Sunday 11 September 2016

पुस्तकायण...




प्राण होई पुस्तक | प्रेममयी पुस्तक |
पुस्तकात डुंबलो | मनोभावे ||

पुस्तकचि बाप | पुस्तक होई माय |
करी ज्ञानपान | वात्सल्याने ||

तेच खरे पुस्तक | घडवी जे मस्तक |
मानवाशी मानव | जोडीते जे ||

तोडील मानव | मनी भरूनिया द्वेष |
नसे ते पुस्तक | विनू म्हणे ||

नको व्हायाळ वाचन | भारंभार उगा |
पुरे एक पान | परी मनोभावे ||

पुस्तक वाचन | नंतर चिंतन |
थोडेसे मनन | काढून टिपणे ||

पुस्तके चिकित्सा | हरेक शब्दाचा तो तर्क |
नको आंधळा विश्वास | ग्रंथप्रामाण्ये ||

पुस्तक पुस्तक | करी विचारप्रवण |
कृतीचीही जोड | तया लाभो ||

मैत्रचि पुस्तक | कधी होऊनिया 'सखी' |
कवेत घेई पुस्तक | आशिक 'विनू' म्हणे ||

ऐसे हे पुस्तक | ज्ञानाचे भांडार |
द्या थोडासा आराम | मोबाईलास ||

ऐसे झाले सारे | पुस्तकाचे सार |
तयास आधार | लाभों विवेकाचा ||

- विनायक होगाडे

No comments:

Post a Comment